Tuesday 11 October 2016

"The Life" is not "India & Pakistan". जिंदगी इण्डिया और पाकिस्तान नही हैं



"जिंदगी" एक आसान सा शब्द; जो कहना तो आसान है पर समझना थोड़ा मुश्किल। जिंदगी इण्डिया  और  पाकिस्तान थोड़े  ही न  हैं, जिससे जिंदगी की गाड़ी चल जाये। 

इसका ना तो कोई धर्म है और ना ही कोई अरमान है, ये तो भाई, दो वक्त की रोटी का मोहताज हैं. बस फिर क्या, इस दो रोटी के लिये. . , सारी ये ताम झाम हैं। ये क्या, पर आप इसे शायरी न समझ बैठियेगा।

हमे ये जरूर सोचना होगा और ये सोचने की बात भी है, कुछ जिंदगियां दूसरी जिंदगियों की जान बचा रही है तो कुछ जान लेने पर तुली हुई हैं। ये कैसी जिंदगी हैं जो दो वक्त की रोटी के लिये दुसरो की जाने ले रही हैं। शेर अगर नरभक्षी हो जाये तो वह किसी धर्म, जात को देख कर नहीं मारता और ना ही कोई पंडित, और मौलवी उसे बचाने के लिए खड़े नजर आते है, क्योकि वो एक जानवर है और भाई, वो पागल भी तो हो गया है, ये ख्याल बिलकुल ही नहीं आता की पिजंरे में १० दिन बंद करके एकबार देखना चाहिये, तो हो सकता है की वो सही हो जाए। जनकल्याण के लिये उसे मारना जरुरी हो जाता हैं।  ये सही भी है, कही इसतरह के एक्सपेरिमेंट करने के चक्कर में कई ओर जाने भी न चली जाये।  ये तो एक प्राकृतिक उदाहरण है। इसका मतलब कुछ मेन मेड भी उदाहरण है, जो मानव जिंदगियो को नरभक्षी बनने पर मजबूर कर देते है।  आप समझदार है , समझ गए होंगे। 

जिंदगी का भी एक वसुल है, की वह अपनी साख बचाने के लिये कोई भी कदम उठाने के लिये मजबूर हो जाता है, क्योकि उसे बस चलना और अंतिम घड़ी तक बस चलना ही आता हैं। भूख लगने पर सांप भी अपने बच्चो को खा जाता है.  आतंकवाद का भी यही रूप है जो अपनी ही जिंदगियो को खाने पर तुला हुआ है। यह नरभक्षी के सामान हो गया है, जहाँ हमे इंडिया, पाकिस्तान, हिन्दू और मुस्लिम से ऊपर जनकल्याण के उद्देस्य से इनका खात्मा  करना जरुरी हो गया है। अगर हम इसमें कामयाब हो जाते है, तो फिर क्या इंडिया और पाकिस्तान।, सभी जगह अमन के फूल खिलेंगे और इन्हें कोई टैंक रौंद भी नहीं पायेगा।